Saturday, March 14, 2020

सूना घर का कोना कोना
सूनी तानो की पिटारी
ऐसा लगता जैसे भैया
बदल गई बीवी हमारी
मुई पड़ोसन विदेश घूम आयी
मैं कब जा पाऊंगी
बिन पंख अम्बर की उड़ान
मैं कब भर पाऊंगी
तुम जैसे निखट्टू पति से
पासपोर्ट न बनेगा
इस जनम में शायद मुझको
परदेस सुख न मिलेगा
रात दिन बस यह ही लावा
कानों में पिघलाती थी
करम फूट गए तुमसे करके शादी
बस यह ही जतलाती थी
मैं बोला सुन भागवान
तेरी कामना अब पूरी कर दूंगा
फ्लाइट से तुझे इटली भेज दूंगा
पत्नि बोली सुनो पति जी
चूड़ी- कंगन, झुमका- पायल
साड़ी - सैंडल, मॉल - सिनेमा
कुछ भी न चाहूंगी
सूर्य देवता भस्म कर दें
इस वायरस की जाति को
मैं तो जान से ज्यादा प्यार करूं
भारत की पाती - पाती को
कंजूस, निखट्टू, कुएं का मेंढ़क
इन नामों से तुमको न बुलाऊंगी
मांगकर उम्र सिंदूर प्रभु से
सांझ ढले जीवन तक
घर - अंगना संग तुम्हारे
नाती - पोते खूब खिलाऊंगी।
अमिता सिंह








Tuesday, December 3, 2019

रुला रही है प्याज
लग रहे हैं कयास
कैसे बने साग
गरीब की कुटिया मे
भूख का है सवाल
तृप्ति की है दरकार
कैसे बंधे आस
गरीब की कुटिया मे
गरीबी के दिन यूं ही
गुजर हो जाते थे
प्याज रोटी खाकर ही
बच्चे सो जाते थे
जिस दिन दाल-सब्जी
बन जाती थी
उस दिन आँखों मे
चमक आ जाती थी
हो गया इसका भी अवकाश
गरीब की कुटिया मे
मध्यम वर्ग भी अछूता नहीं
इस आफत से
मांग रहे हैं वो बढ़ी पगार
इस नयी मुसीबत से
भले ही हो
प्याज की मारामारी
मगर जेब हमारी ही
कटनी है बेचारी
रिक्शे वाला भी दाम
बढ़ाकर बोलेगा
हमारी जेब से अपनी
प्याज को तोलेगा
डूबेगा हमारा ही उजास
गरीब की कुटिया में
रुला रही है प्याज
लग रहे हैं कयास
गरीब की कुटिया मे
अमिता सिंह





Saturday, October 19, 2019

परिचय






आत्म परिचय
_______________ 

नाम  - श्रीमती अमिता सिंह
पिताश्री -स्व. श्री धर्मेन्द्र सिंह
माताश्री -स्व. विद्या वती  
जन्म- 18 नवम्बर ,झाँसी  
शिक्षा- एम. ए.(अर्थ शास्त्र)
पता- 40,चंद्रलोक हाइडिल कॉलोनी, अलीगंज - लखनऊ
मोबाइल-  7860071064
ईमेल- amita64.singh@gmail.com

निजी अभिरुचि-  साहित्य,संगीत,सांस्कृतिक कार्यक्रम,समाज सेवा।

प्रकाशित पुस्तक- "रोटियां तपने दो"व "अगीत अंतस से" कहानी,ग़ज़ल,कवितायेँ समय समय पर विभिन्न अखबार व पत्र पत्रिकाओं मे प्रकाशित होती रहती हैं। मुख्य विषय नारी जीवन की समस्याएं व उनसे उबरने के प्रयास।

साहित्यसंस्थाओं से जुड़ाव- नव सृजन संस्था,अ. भा.अगीत परिषद्,काव्या समूह,तपोवन साहित्य- 
 परिषद, तुलसी संसथान,लक्ष्य साहित्य परिषद् सृजन संस्था व शक्ति क्लब,राष्ट्रीय एकता मिशन,साहित्य -सागर आदि।

प्रकाशनाधीन -  " मैं  तो जगत पिराऊँ "  काव्य संकलन, नानाजी " हॉकी जादूगर मेजर ध्यानचंद"  
जी पर संस्मरण पुस्तक व लघुकथायें  आदि।
लखनऊ आकाशवाणी में "गृहलक्ष्मी " कार्यक्रम में जल संरक्षण व पर्यावरण पर काव्य पाठ।

सम्मान प्राप्त-   सृजन साहित्य साधना सम्मान,भाषा रत्न सम्मान,14वां राष्ट्रीय पुस्तक मेला लखनऊ मे 
अगीत संस्था द्वारा सम्मान,हिमालयन सम्मान,राम स्वरुप जगदेई स्मृति सेवा संस्थान,लखनऊ द्वारा सम्मान,महादेवी वर्मा सम्मान पत्र,साहित्यकार दिवस 1 मार्च 2017 शकुंतला शिरोठिया जी की पावन 
स्मृति मे विशिष्ट प्रशस्ति पत्र।
खादी संस्था,काकोरी शहीद दिवस,आदि मंचों पर काव्य के माध्यम से प्रौढ़,बालिकाओं एवं नारी हितों 
की रक्षा के प्रति कृतसंकल्प।
स्मृति समिति दिल्ली की तरफ से सम्मानित किया गया। समग्र विकास वेलफेयर सोसाइटी की तरफ से प्रेरणा स्रोत महिला सम्मान विश्व पर्यावरण दिवस ५ जून को दिया गया।
लखनऊ बंगीय नागरिक सम्मान व कुशवाहा मौर्य शाक्य सैनी कल्याण संस्था द्वारा सम्मानित किया गया।
नारायणी साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा सम्मान पत्र प्रदान किया गया।

मानद उपाधि --- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सेवी संस्थान इलाहाबाद द्वारा "साहित्य श्री "की मानद उपाधि से
व विक्रम शिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा "विद्यावाचस्पति
सम्मान "  से  सम्मानित किया गया।




Monday, February 20, 2017

थपेड़े

मेरे अंतस की कीमियों से
सच के साये गुजरते गये---
और झूठ की दहलीज़ पर
चराग़ मोहब्बत के जलते गये---

वो न बैठे ख़ामोश
न कोई हरक़त की
न पूछा हाल दिल का
बस रात के अलाव तले
जिस्म दो जलते रहे---

तड़प की राख से जब
रूह की बात चली
गुरूर के बादल फिर
जरूरतों के मोहताज़ तले
इठलाकर बरसते रहे---

झुक गयी बदली भी फिर
बादलों की ओट में
सर उठाने की इजाजत नहीं
सर छुपाने के दौर में
वफ़ा की कोपलों को
रसूखदार रौंदते गये---

मेरे अंतस की कीमियों से
सच के साये गुजरते गये---
और झूठ की दहलीज़ पर
चराग़ मोहब्बत के जलते गये---

Tuesday, October 25, 2016

पिघलती शमा

तुम्हारे अहंकार को जिलाने के लिये----

मैं खड़ी हूँ सतत शिला की तरह
तुम्हारे अस्तित्व को बचाने के लिये

उठ गये मेरे कदम तो तुम
चार कदम भी न चल पाओगे
मिल गयी मंज़िल मुझे तो तुम
यूँ ही भटकाव में सिमट जाओगे

तुम्हारे दंभ को बहलाने के लिये----

मैं झुकी हूँ कमज़ोर डाल की तरह
तुम्हारे खोखलेपन को छुपाने के लिये

चल गयी चाल जो मैं तो तुम
एक बाज़ी भी न जीत पाओगे
हार कर सर्वस्व अपना
जीते जी ही मर जाओगे

हारी बाज़ी जिताने के लिये----

मैं बंद कर देती हूँ द्वार मस्तिष्क के
तुम्हारी आत्म-संतुष्टि दर्शाने के लिये
  
चख लिया स्वाभिमान मैंने तो तुम
झुकी नज़रें न उठा पाओगे
मेरी सहनशीलता के अलाव तले
अधपका ग़ुरूर ही चख पाओगे

तुम्हारी हठधर्मिता सहलाने के लिये----

मैं गटक लेती हूँ समस्त तेज़ाब
तुम्हारी कठोरता पिघलाने के लिये

छलका दिया जो मैंने तुम्हारी
चंचलता का पैमाना तो तुम
परिष्कृत समाज न झेल पाओगे
बूझ गये जो मेरे ह्रदय की पहेली
उम्र-भर रीते ही रह जाओगे

तुम्हारे प्रेम को फुसलाने के लिये----

अश्क़ मोती से तोल लेती हूँ मैं
रूह भस्म से सुलगा लेती हूँ मैं

परंपराओं का मूल्य चुकाने के लिये----

मैं तपी हूँ एक स्वर्ण की तरह
तुम्हारी जात चमकाने के लिये

Wednesday, October 12, 2016

मृग-मरीचिका

मत धुँधलाओ इन्हें
ये खुशफ़हमी के साये हैं
जो नज़र तो आते हैं मगर
पकड़ में नहीं आते

सदियों से मंडरा रहे हैं ये
पलकों की मुंडेर पे
कभी स्वप्न में मुस्कुराते हैं
कभी दर्द में सहम जाते हैं

कभी झाँकते हैं सूनी उदास
आँखों में
और कभी बनकर पलाश
अंतस की बगिया में
महक जाते हैं

कभी अस्तित्व को टाँग देते हैं
एक सूली पर
और कभी बनकर सुबह
तिमिर की छटपटाहट को
निगल जाते हैं

मैं बनकर पवन उड़ जाना चाहती हूँ
मगर तभी
ये चमका देते हैं नन्हें स्वप्न
और मैं उलीच कर संशय
ओक में भर लेती हूँ
अनिश्चित भविष्य

निहारती हूँ उसे एक मासूम
बच्चे की तरह
ह्रदय-पटल से पोंछकर अनिश्चिंताओं
की धूल
छुप जाती हूँ एक बदली की ओट में

मगर तभी फट जाते हैं बादल
और निष्ठुरता के ताप से
भीग जाता है व्यथित मन

और वो साया जिसे मैं समझ रही थी
उम्मीदों का खिवैया
खींच लेता है मुझे एक काली अंधेरी
गुफा में
मस्तिष्क के गणित को करके शून्य
लील लेता है वो भूत,भविष्य,वर्तमान
भूत,भविष्य,वर्तमान

Friday, September 30, 2016

माँ ने छुपाया आँचल में
और सारा दर्द सीने में उड़ेल लिया
चैन के पल्लू में खोंसकर मुझको
खुद बेचैनी का दोशाला ओढ़ लिया ------------------
आगे की कविता मेरी प्रथम पुस्तक 'रोटियां तपने दो'
में पढ़कर मुझे स्नेह दीजिये पुस्तक मिलने का पता ---------
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